क्या आपके साथ कभी ऐसा हुआ है कि आपने सिर्फ एक वेबसाइट पर कुछ खोजा हो और अगले ही पल से आपको उसी चीज़ के विज्ञापन हर जगह दिखने लगें? या आपका फ़ोन अनजान मार्केटिंग कॉल्स और SMS से भरा रहता हो? या किसी कंपनी से आपका डेटा लीक हो गया हो और आपको पता भी न चला हो?
अगर हाँ, तो आप अकेले नहीं हैं। हमारी आज की डिजिटल दुनिया में, हमारा व्यक्तिगत डेटा (Personal Data) – जैसे हमारा नाम, फ़ोन नंबर, ईमेल, पता, और यहाँ तक कि हमारी पसंद-नापसंद – एक खुली किताब की तरह बन गया है, जिसका इस्तेमाल कंपनियाँ अपने फायदे के लिए करती हैं। अब तक, हमारे पास इस पर बहुत कम नियंत्रण था।
लेकिन अब नहीं।
भारत सरकार ने इस डिजिटल अराजकता को समाप्त करने और आम आदमी को उसकी डिजिटल पहचान पर पूरा अधिकार देने के लिए एक ऐतिहासिक कानून बनाया है – डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023 (Digital Personal Data Protection Act, 2023), जिसे संक्षेप में DPDP Act कहा जाता है।
यह कानून सिर्फ एक और सरकारी नियम नहीं है; यह आपकी डिजिटल जिंदगी के लिए एक ‘बॉडीगार्ड’ या ‘सुरक्षा कवच’ है। 2025 में, जब हमारा जीवन और भी ज़्यादा ऑनलाइन हो जाएगा, इस कानून को समझना हर भारतीय के लिए बेहद ज़रूरी है। यह 1500-शब्दों का विस्तृत लेख आपको बताएगा कि यह कानून क्या है, यह आपके लिए क्यों मायने रखता है, और यह आपको कौन-कौन से नए डिजिटल अधिकार देता है।
DPDP Act क्या है? (सरल भाषा में)
DPDP Act एक नया भारतीय कानून है जो यह तय करता है कि कंपनियाँ, ऐप्स और कोई भी ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म आपके व्यक्तिगत डिजिटल डेटा का उपयोग कैसे कर सकते हैं और कैसे नहीं।
इसे एक उदाहरण से समझिए: मान लीजिए आपका डेटा एक कीमती संपत्ति है। अब तक, कोई भी इस संपत्ति का इस्तेमाल बिना आपसे ठीक से पूछे कर सकता था। लेकिन अब, DPDP Act एक नियम पुस्तिका की तरह है जो कहता है:
अगर किसी को आपकी संपत्ति (डेटा) का उपयोग करना है, तो उसे पहले आपसे स्पष्ट अनुमति (Consent) लेनी होगी।
उसे यह भी बताना होगा कि वह आपकी संपत्ति का किस काम के लिए उपयोग करेगा।
वह आपकी संपत्ति का उपयोग केवल उसी काम के लिए कर सकता है जिसके लिए अनुमति ली गई है।
जब काम खत्म हो जाए, तो उसे आपकी संपत्ति को नष्ट करना होगा।
और सबसे महत्वपूर्ण, उसे आपकी संपत्ति की सुरक्षा की पूरी ज़िम्मेदारी लेनी होगी।
यह कानून कंपनियों को जवाबदेह बनाता है और सत्ता को उनके हाथों से निकालकर वापस आम नागरिक, यानी आपके हाथों में देता है।
इस कानून की ज़रूरत क्यों पड़ी?
इस कानून के आने से पहले, भारत में डेटा सुरक्षा को लेकर कोई एक, ठोस कानून नहीं था। इसका परिणाम यह हुआ:
डेटा की लूट: कंपनियाँ बिना किसी रोक-टोक के आपका डेटा इकट्ठा करती थीं और उसे मार्केटिंग कंपनियों को बेच देती थीं, जिससे आपको अनचाहे कॉल्स और मैसेज आते थे।
जवाबदेही की कमी: अगर किसी कंपनी से आपका डेटा लीक हो जाता था, तो उसकी कोई खास जवाबदेही नहीं होती थी।
सहमति का धोखा: कंपनियाँ लंबे-चौड़े, जटिल “नियम और शर्तों” (Terms & Conditions) के पीछे आपकी सहमति छिपा लेती थीं, जिन्हें कोई पढ़ता भी नहीं था।
अपने डेटा पर कोई नियंत्रण नहीं: एक बार डेटा देने के बाद, उसे वापस लेने या डिलीट करवाने का कोई आसान तरीका नहीं था।
DPDP Act इन्हीं सभी समस्याओं का एक ठोस समाधान है।
आपके 7 नए डिजिटल अधिकार (जो हर भारतीय को जानने चाहिए)
यह कानून आपको, यानी “डेटा प्रिंसिपल” (Data Principal) को, 7 शक्तिशाली अधिकार देता है:
1. जानकारी का अधिकार (Right to Information) अब आप किसी भी कंपनी या प्लेटफ़ॉर्म (जिसे कानून में “डेटा फिड्यूशरी” कहा गया है) से पूछ सकते हैं कि उनके पास आपका कौन-कौन सा व्यक्तिगत डेटा है और वे उसका क्या कर रहे हैं। उन्हें आपको इसका एक स्पष्ट सारांश देना होगा।
उदाहरण: आप अपने फ़ूड डिलीवरी ऐप से पूछ सकते हैं, “मेरे पास आपका कौन-कौन सा डेटा है, जैसे मेरा पता, फ़ोन नंबर, ऑर्डर हिस्ट्री, और आप इसका उपयोग कैसे करते हैं?”
2. सहमति का अधिकार (Right to Consent) यह कानून का दिल है। अब कंपनियाँ आपका डेटा लेने से पहले आपसे एक स्पष्ट, सूचित और स्वतंत्र सहमति लेंगी।
स्पष्ट: सहमति “हाँ” या “नहीं” में होनी चाहिए, छिपी हुई नहीं।
सूचित: आपको यह बताया जाएगा कि आपका डेटा क्यों लिया जा रहा है।
स्वतंत्र: आपको सहमति देने या न देने का पूरा अधिकार होगा।
उदाहरण: अब कोई ऐप आपसे आपके कॉन्टैक्ट्स का एक्सेस मांगते हुए यह नहीं कह सकता, “हम बेहतर अनुभव के लिए यह कर रहे हैं।” उसे बताना होगा कि उसे आपके कॉन्टैक्ट्स की ज़रूरत क्यों है (जैसे, दोस्तों को खोजने के लिए)।
3. सहमति वापस लेने का अधिकार (Right to Withdraw Consent) जिस आसानी से आपने सहमति दी थी, उसी आसानी से आप उसे कभी भी वापस ले सकते हैं। एक बार जब आप अपनी सहमति वापस ले लेते हैं, तो कंपनी को आपके डेटा का उपयोग बंद करना होगा और उसे डिलीट करना होगा (यदि कानूनी रूप से आवश्यक न हो)।
उदाहरण: अगर आपने किसी न्यूज़ ऐप को लोकेशन एक्सेस दिया था, लेकिन अब आप नहीं चाहते कि वह आपकी लोकेशन ट्रैक करे, तो आप ऐप की सेटिंग्स में जाकर या कंपनी से संपर्क करके अपनी सहमति वापस ले सकते हैं।
4. सुधार और मिटाने का अधिकार (Right to Correction and Erasure) यदि किसी कंपनी के पास आपका कोई डेटा गलत है (जैसे नाम की गलत स्पेलिंग या पुराना पता), तो आप उसे ठीक करने के लिए कह सकते हैं। इसी तरह, जब आपके डेटा का उद्देश्य पूरा हो जाए, तो आप उसे डिलीट करने का अनुरोध कर सकते हैं।
उदाहरण: अगर आपने नौकरी बदल ली है, तो आप पुराने एम्प्लॉयर से अपना डेटा डिलीट करने के लिए कह सकते हैं, जब तक कि उन्हें कानूनी रूप से उसे रखने की आवश्यकता न हो।
5. शिकायत निवारण का अधिकार (Right to Grievance Redressal) अगर आपको लगता है कि कोई कंपनी आपके डेटा का दुरुपयोग कर रही है या आपके अधिकारों का उल्लंघन कर रही है, तो अब आपके पास शिकायत करने का एक स्पष्ट रास्ता है।
पहला कदम: आपको पहले कंपनी के “डेटा प्रोटेक्शन ऑफिसर” से शिकायत करनी होगी।
दूसरा कदम: यदि आप उनके जवाब से संतुष्ट नहीं हैं, तो आप “डेटा संरक्षण बोर्ड” (Data Protection Board) में अपील कर सकते हैं।
6. नामांकन का अधिकार (Right of Nomination) यह एक अनूठा अधिकार है। अब आप किसी व्यक्ति को नामांकित (nominate) कर सकते हैं जो आपकी मृत्यु या अक्षमता की स्थिति में आपके इन सभी डिजिटल अधिकारों का प्रयोग कर सकेगा।
7. हानिकारक प्रोसेसिंग से सुरक्षा का अधिकार (Right to Protection from Harmful Processing) यह कानून आपको ऐसे डेटा प्रोसेसिंग से बचाता है जिससे आपको कोई नुकसान हो सकता है, जैसे वित्तीय हानि, पहचान की चोरी, या किसी भी प्रकार का उत्पीड़न।
कंपनियों की नई ज़िम्मेदारियाँ (अब वे क्या करने के लिए बाध्य हैं?)
इस कानून ने कंपनियों पर भी कई ज़िम्मेदारियाँ डाली हैं:
उद्देश्य सीमा (Purpose Limitation): वे केवल उसी विशिष्ट उद्देश्य के लिए डेटा का उपयोग कर सकते हैं जिसके लिए उन्होंने सहमति ली है।
डेटा न्यूनीकरण (Data Minimisation): उन्हें केवल उतना ही डेटा इकट्ठा करना चाहिए जितना उस उद्देश्य के लिए बिल्कुल आवश्यक हो।
भंडारण सीमा (Storage Limitation): उद्देश्य पूरा होने के बाद उन्हें आपका डेटा डिलीट करना होगा। वे इसे हमेशा के लिए नहीं रख सकते।
डेटा सुरक्षा (Data Security): उन्हें आपके डेटा को हैकर्स और लीक से बचाने के लिए उचित सुरक्षा उपाय करने होंगे।
डेटा ब्रीच की रिपोर्टिंग: अगर कोई डेटा ब्रीच होता है, तो उन्हें इसकी सूचना डेटा संरक्षण बोर्ड और प्रभावित उपयोगकर्ताओं (यानी आपको) को देनी होगी।
डेटा संरक्षण बोर्ड ऑफ इंडिया (The Digital Police)
यह कानून एक स्वतंत्र निकाय, “डेटा संरक्षण बोर्ड ऑफ इंडिया” (Data Protection Board of India) की स्थापना करता है। यह बोर्ड एक डिजिटल पुलिस की तरह काम करेगा:
यह लोगों की शिकायतों की सुनवाई करेगा।
यह डेटा उल्लंघनों की जांच करेगा।
यह नियमों का पालन न करने वाली कंपनियों पर भारी जुर्माना लगाएगा।
और यह जुर्माना छोटा-मोटा नहीं है। कानून का उल्लंघन करने पर कंपनियों पर ₹250 करोड़ तक का जुर्माना लगाया जा सकता है। यह सुनिश्चित करेगा कि कंपनियाँ इस कानून को गंभीरता से लें।
एक नागरिक के रूप में आपकी भी हैं कुछ ज़िम्मेदारियाँ
यह कानून जहाँ आपको अधिकार देता है, वहीं कुछ कर्तव्य भी सौंपता है:
किसी भी कंपनी को गलत जानकारी न दें।
दूसरों के बारे में झूठी या तुच्छ शिकायतें दर्ज न करें।
अपने अधिकारों के बारे में जागरूक रहें।
निष्कर्ष: अब आप हैं अपने डिजिटल डेटा के असली मालिक
डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023, भारतीय नागरिकों के लिए एक नए डिजिटल युग की शुरुआत है। यह सिर्फ एक कानून नहीं, बल्कि एक सशक्तिकरण का साधन है। यह ऑनलाइन दुनिया में सत्ता के संतुलन को कंपनियों से हटाकर वापस आम आदमी के हाथों में देता है।
अब आपका डेटा आपकी संपत्ति है, और इस कानून ने आपको उस संपत्ति की चाबियाँ सौंप दी हैं। अब यह आप पर निर्भर करता है कि आप इन अधिकारों के बारे में जानें, जागरूक बनें, और अपनी डिजिटल पहचान की रक्षा के लिए इनका बुद्धिमानी से उपयोग करें। अगली बार जब कोई ऐप आपसे अनावश्यक अनुमति मांगे, या कोई कंपनी आपके डेटा के बारे में पारदर्शिता दिखाने से इनकार करे, तो याद रखें – अब आपके पास एक कानून है, एक बॉडीगार्ड है जो आपके साथ खड़ा है।
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